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शिक्षा में गिरावट, किसी की नजर नहीं

हरिशंकर व्यास
कोरोना वायरस की महामारी से सवा पांच लाख लोग मरे या 47 लाख लोगों की मौत हुई, इस पर बहस चल रही है। लेकिन महामारी ने लोगों को शारीरिक रूप से ही बीमार नहीं किया या सिर्फ जान ही नहीं ली, बल्कि मानसिक रूप से भी बहुत कमजोर किया है। दो साल की महामारी में अर्थव्यवस्था के साथ-साथ शिक्षा व्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है, जिससे एक पूरी पीढ़ी का जीवन प्रभावित हुआ है। सोशल मीडिया में यह मजाक चलता है कि ऑनलाइन पढ़ाई करे डॉक्टरों की जो पीढ़ी तैयार हुई है वह कैसे इलाज करेगी। लेकिन यह सिर्फ मजाक का विषय नहीं है। सिर्फ ऑनलाइन पढ़ाई करने वालों की मेधा और अध्ययन पर ही असर नहीं हुआ है, बल्कि उससे ज्यादा असर उन बच्चों पर हुआ, जो पढ़ाई ही नहीं कर सके।

बच्चों और किशोरों के लिए कोरोना की महामारी अभिशाप बन कर आई। भारत में वैसे भी शिक्षा का बुनियादी ढांचा बहुत कमजोर है इसलिए स्कूल-कॉलेज बंद हुए तो तत्काल कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो पाई। दूसरे, कोरोना न फैले इस चिंता में लंबे समय तक स्कूल-कॉलेज पूरी तरह से बंद रखे गए। ऑनलाइन पढ़ाई का तमाशा चलता रहा, लेकिन हकीकत यह है कि दिल्ली जैसे राजधानी शहर में भी आधे से ज्यादा बच्चों के पास ऑनलाइन पढ़ाई का कोई जरिया उपलब्ध नहीं था और कुछ चुनिंदा शिक्षण संस्थानों को छोड़ कर ज्यादा संस्थानों के पास भी ऑनलाइन पढ़ाई सुचारू रूप से चलाने का कोई बुनियादी ढांचा नहीं था।

कोरोना की लहर के साथ लंबे समय तक स्कूल-कॉलेज बंद रहने का एक नतीजा यह हुआ कि शिक्षा की गुणवत्ता और निरंतरता दोनों प्रभावित हुई। इसका जिक्र इस साल बजट से पहले पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में भी किया गया। इसमें सरकार ने माना है कि लाखों बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 37 फीसदी बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं। सोचें, यह कितना बड़ा आंकड़ा है और यह स्कूल छोडऩे वाले बच्चों के जीवन को किस हद तक प्रभावित करेगा? जाने माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कुछ शोधकर्ताओं के साथ मिल कर स्कूलों में होने वाली ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई का अध्ययन किया है। अध्ययन के बाद ‘स्कूल शिक्षा पर आपातकालीन रिपोर्ट’ उन्होंने जारी की, जिसमें बताया कि देश के ग्रामीण इलाकों में सिर्फ आठ फीसदी बच्चों के पास ऑनलाइन अध्ययन की सुविधा उपलब्ध थी। इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि 37 फीसदी बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी।

कोरोना महामारी के दौरान शिक्षा की स्थिति पर एक दूसरा अध्ययन अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा किया गया। यूनिवर्सिटी ने पांच राज्यों में एक शोध कराया, जिसमें पता चला कि छात्रों के सीखने की क्षमता कम हुई है। यह प्रत्यक्ष रूप से प्रमाणित हुआ। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के शोध से पता चला कि बच्चों के बुनियादी ज्ञान, कौशल में कमी आई है। पढऩे, समझने या गणित के आसान सवाल हल करने में भी वे पिछड़ गए हैं। यह बहुत चिंताजनक स्थिति है। यह पूरी पीढ़ी के पढऩे और समझने की क्षमता कम हुई है। उनके जीवन के दो अहम साल खत्म हो गए हैं। उसकी भरपाई के लिए सरकार को तत्काल और बड़े पैमाने पर पहल करनी चाहिए। राज्यों में हजारों की संख्या में निजी स्कूल बंद होने की खबर है। बच्चों की संख्या और जरूरत के मुताबिक स्कूल शुरू कराने, शिक्षकों की भरती और पाठ्यक्रम में बदलाव करके बच्चों को हुए नुकसान की भरपाई करनी चाहिए। यह काम जितनी जल्दी हो उतना अच्छा होगा।

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