ब्लॉग

गेहूं बना सिरदर्द

वेद प्रताप वैदिक
अभी महिना भर पहले तक सरकार दावे कर रही थी कि इस बार देश में गेहूं का उत्पादन गज़ब का होगा। उम्मीद थी कि वह 11 करोड़ टन से ज्यादा ही होगा और भारत इस साल सबसे ज्यादा गेहूं निर्यात करेगा और जमकर पैसे कमाएगा। इसकी संभावना इसलिए भी बढ़ गई थी कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया में गेहूं की कमी पडऩे लगी है लेकिन ऐसा क्या हुआ कि सरकार ने रातों-रात फैसला कर लिया कि भारत अब गेहूं निर्यात नहीं करेगा?

इसका पहला कारण तो यह है कि गेहूं का उत्पादन अचानक घट गया है। इसका मुख्य कारण मार्च, अप्रैल और मई में पडऩे वाली भयंकर गर्मी है। सरकार ने पिछले साल अपने गोदामों में सवा चार करोड़ टन गेहूं खरीदकर भर लिया था लेकिन इस बार वह सिर्फ दो करोड़ टन गेहूं ही खरीद पाई है। पिछले 15 साल में इतना कम सरकारी भंडारण पहली बार हुआ है। सरकार को उम्मीद थी कि इस बार 11 करोड़ टन से भी ज्यादा गेहूं पैदा होगा और वह लगभग एक-डेढ़ करोड़ टन निर्यात करेगी।

सरकारी अनुमान है कि इस साल गेहूं का उत्पादन 10 करोड़ टन से भी कम होगा। लगभग 4-5 करोड़ टन के निर्यात के समझौते हो चुके हैं और लगभग डेढ़ करोड़ टन निर्यात भी हो चुका है। हजारों टन गेहूं हम अफगानिस्तान और श्रीलंका भी भेज चुके हैं। अब इस निर्यात पर जो प्रतिबंध लगाया गया है, उसके पीछे तर्क यही है कि एक तो लगभग 80 करोड़ लोगों को निशुल्क अनाज बांटना है और दूसरा यह कि अनाज के दाम अचानक बहुत बढ़ गए हैं।
20-22 रू. किलो का गेहूं आजकल बाजार में 30 रु. किलो तक बिक रहा है। यह ठीक है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस समय गेहूं के दामों में काफी उछाल आ गया है और भारत उससे काफी पैसा कमा सकता है लेकिन सरकार का यह डर बहुत स्वाभाविक है कि यदि निर्यात बढ़ गया तो गेहूं इतना कम न पड़ जाए कि भारत में संकट खड़ा हो जाए। सरकार का यह सोच तो व्यावहारिक है लेकिन यदि गेहूं का निर्यात रूक गया तो हमारे किसानों की आमदनी काफी घट जाएगी। उन्हें मजबूर होकर अपने गेहूं को सस्ते से सस्ते दाम पर बेचना होगा।

इस समय सबसे बड़ी चांदी उन व्यापारियों की है, जिन्होंने ज्यादा कीमतों पर गेहूं खरीदकर अपने गोदामों में दबा लिया है लेकिन गेहूं का निर्यात रूक जाने से उसके दाम गिरेंगे और इससे किसानों से भी ज्यादा व्यापारी घाटे में उतर जाएंगे। सरकार चाहती तो निर्यात किए जानेवाले गेहूं के दाम बढ़ा सकती थी। उससे निर्यात की मात्रा घटती लेकिन सरकार की आमदनी बढ़ जाती। वह किसानों से भी थोड़ी ज्यादा कीमत पर गेहूं खरीदती तो उसका भंडारण दुगुना हो सकता था। गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने के पीछे श्रीलंका से टपक रहा सबक भी है। इस समय देश में खाद्य-पदार्थों की मंहगाई से लोगों का पारा चढऩा स्वाभाविक हो गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *