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अलकनंदा में कपड़ों के रेशे, प्लास्टिक के कण और फॉम को निगल रहीं मछलियां, जानिए शोध में क्या हुए चौंकाने वाले खुलासे

श्रीनगर। अलकनंदा में पाए जाने वाली मछलियों के पेट में हानिकारक माइक्रोप्लास्टिक, कपड़ों के रेशे और फॉम के अवशेष मिले हैं। यानि कि नदी के पानी में प्लास्टिक और पॉलिथीन सहित अन्य कूड़ा प्रवाहित किया जा रहा है। यह खुलासा एचएनबी केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय के हिमालयन एक्वाटिका बायोडायवर्सिटी (हिमालय जलीय जैव विविधता) विभाग के शोध अध्ययन में हुआ है। शोधकर्ताओं ने इसे चिंताजनक बताया है। उनका कहना है कि जब पहाड़ में ही ऐसी स्थिति है, तो मैदानी क्षेत्रों में क्या स्थिति होगी.? अलकनंदा नदी के बाद विभाग शोध का दायरा बढ़ाते हुए गंगा नदी और अन्य सहायक नदियों पर अध्ययन कर रहा है।

इन अवशेषों से मछलियों पर क्या असर पड़ रहा है, इस पर भी शोध किया जाएगा। गंगा की सहायक नदियों में बड़े पैमाने पर गंदगी डाली जा रही हैं। इसमेें पॉलिथीन, प्लास्टिक, बोतलें, बाल और पुराने कपड़ों की काफी मात्रा है। इसे देखते हुए गढ़वाल विवि के हिमालय जलीय जैव विविधता विभाग ने अलकनंदा नदी में प्रदूषण के प्रभाव का अध्ययन किया। शोध के दौरान विभागाध्यक्ष डॉ. जसपाल सिंह चौहान और शोध छात्रा नेहा व वैशाली की टीम ने श्रीनगर में अलकनंदा नदी से मछलियों के पेट के नमूने लिए। इसमें चौंकाने वाला तथ्य यह रहा है कि सभी मछलियों के भोजन के साथ माइक्रोप्लास्टिक, पॉलीमर, फाइबर और फॉम के अवशेष मिले। डॉ. चौहान ने बताया कि पॉलीथिन-प्लास्टिक खत्म नहीं होता है। बल्कि यह छोटे-छोटे कणों में टूट जाता है। माइक्रोप्लास्टिक 5 मिलीमीटर से छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं। नदी के पानी के साथ यह मछलियों के शरीर में प्रवेश करते हैं या कभी मछलियों के आहार के जरिए यह उनके शरीर में पहुंच रहे हैं।

उन्होंने बताया कि लैब में जब यह पुष्ट हो गया कि मछलियों के पेट में माइक्रोप्लास्टिक और अन्य सामग्री जा रही है, तो विश्लेषण के लिए आईआईटी रुड़की की लैब नमूने भेजे गए। वहां भी पॉलीमर-माइक्रोप्लास्टिक की पुष्टि हुई। उन्होंने कहा कि मनुष्य के मछलियों के खाने पर इन तत्वों के मानव शरीर में जाने की संभावना है। यह मछलियों की सेहत के लिए भी ठीक नहीं है।

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