ब्लॉग

जीएम फसलों को ना कहना होगा

भारत डोगरा
हाल के वर्षो में किसानों के संकट का एक बड़ा कारण यह है कि उनकी आत्मनिर्भरता और स्वावलंबिता में भारी गिरावट आई है व वे कृषि की नई तकनीकों को अपनाने के साथ रासायनिक कीटनाशक, खरपतवारनाशक, रासायनिक खाद, बाहरी बीजों व उपकरणों पर बहुत निर्भर हो गए हैं।

उन्होंने यह निर्भरता स्वीकार तो उस उम्मीद से की थी कि यह उन्हें आर्थिक समृद्धि की ओर ले जाएगी, पर आरंभिक कुछ वर्षो की सफलता के बावजूद कुछ ही वर्षो में भूमि के उपजाऊपन पर इन रसायनों का प्रतिकूल असर नजर आने लगा व महंगी तकनीक का बोझ परेशान करने लगा। विशेषकर छोटे किसान तो कर्ज की मार से परेान रहने लगे। फसलों की नई किस्मों को लगने वाली नई तरह की बीमारियों व कीड़ों ने विशेष रूप से परेशान किया।

जहां जमीनी स्तर पर किसान इन अनुभवों से गुजर रहे थे, वहां बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्तर पर ऐसे प्रयास चल रहे थे कि किसानों पर अपना नियंत्रण और बढ़ा लिया जाए। इस नियंत्रण को बढ़ाने का प्रमुख साधन बीज को बनाया गया क्योंकि बीज पर नियंत्रण होने से पूरी खेती-किसानी पर नियंत्रण हो सकता है। अत: बड़ी कंपनियों ने बीज क्षेत्र में अपने पैर फैलाने आरंभ किए। पहले बीज के क्षेत्र में छोटी कंपनियां ही अधिक नजर आती थी, पर अब विव स्तर की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने छोटी-छोटी कंपनियों को खरीदना आरंभ किया।
जो बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में आई, वे पहले से कृषि रसायनों व विशेषकर कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों आदि के उत्पादन में लगी हुई थी। इस तरह बीज उद्योग व कृषि रसायन उद्योग एक ही तरह की कंपनी के हाथ में केंद्रीकृत होने लगा।

इससे यह खतरा उत्पन्न हुआ कि ये कंपनियां ऐसा बीज तैयार करेंगी जो उनके रसायनों के अनुकूल हो अथवा बीज को वे अपने रसायन की बिक्री का मायम बनाएंगी। अनेक बड़ी कंपनियों को लगा कि अपने विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, जैसे कि ऐसे बीज बनाना जो उनके रसायनों की बिक्री के अनुकूल हो, उन्हें जेनेटिक इंजीनियरिंग से अधिक मदद मिल सकती है। अत: इन कंपनियों ने जेनेटिक इंजीनियरिंग में बड़े पैमाने पर निवेश करना आरंभ किया। जेनेटिक इंजीनियरिंग से प्राप्त फसलों को संक्षेप में जी.एम. (जेनेटिकली मोडीफाइड) फसल कहते हैं। जी.एम. फसलों के विरोध का एक मुख्य आधार यह रहा है कि यह फसलें स्वास्थ्य व पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित नहीं हैं तथा यह असर जेनेटिक प्रदूषण के माध्यम से अन्य सामान्य फसलों व पौधों में फैल सकता है।

इस विचार को इंडिपेंडेंट साइंस पैनल (स्वतंत्र विज्ञान मंच) ने बहुत सारगर्भित ढंग से व्यक्त किया है। पैनल में एकत्र हुए वि के अनेक देशों के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों ने जी.एम. फसलों पर एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज तैयार किया, जिसके निष्कर्ष में उन्होंने कहा है-जी.एम. फसलों के बारे में जिन लाभों का वायदा किया गया था वे प्राप्त नहीं हुए हैं व यह फसलें खेतों में बढ़ती समस्याएं उपस्थित कर रहीं हैं। अब इस बारे में व्यापक सहमति है कि इन फसलों का प्रसार होने पर ट्रांसजेनिक प्रदूषण से बचा नहीं जा सकता है। अत: जी.एम. फसलों व गैर जी.एम. फसलों का सह अस्तित्व नहीं हो सकता है।

सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि जी.एम. फसलों की सुरक्षा या सेफ्टी प्रमाणित नहीं हो सकी है। इसके विपरीत पर्याप्त प्रमाण प्राप्त हो चुके हैं, जिनसे इन फसलों की सेफ्टी या सुरक्षा संबंधी गंभीर चिंताएं उत्पन्न होती हैं। यदि इनकी उपेक्षा की गई तो स्वास्थ्य व पर्यावरण की क्षति होगी जिसकी पूत्तर्ि नहीं हो सकती है, जिसे फिर ठीक नहीं दिया जा सकता है। जी.एम. फसलों को अब दृढ़ता से रिजेक्ट कर देना चाहिए, अस्वीकृत कर देना चाहिए। इन फसलों से जुड़े खतरे का सबसे अहम पक्ष कई वैज्ञानिकों ने यह बताया है कि जो खतरे पर्यावरण में फैलेंगे उन पर हमारा नियंत्रण नहीं रह जाएगा व बहुत दुष्परिणाम सामने आने पर भी हम इनकी क्षतिपूत्तर्ि नहीं कर पाएंगे। जेनेटिक प्रदूषण का मूल चरित्र ही ऐसा है। वायु प्रदूषण व जल प्रदूषण की गंभीरता पता चलने पर इनके कारणों का पता लगाकर उन्हें नियंत्रित कर सकते हैं, पर जेनेटिक प्रदूषण जो पर्यावरण में चला गया वह हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाता है।

कुछ समय पहले देश के महान वैज्ञानिक प्रोफेसर पुष्प भार्गव का निधन हुआ है। वे ‘सेंटर फॉर सेलयूलर एंड मॉलीक्यूलर बॉयोलाजी’ हैदराबाद के संस्थापक निदेशक रहे व नेशनल नॉलेज कमीशन के उपायक्ष रहे। उन्हें श्रद्धांजलि देने के साथ यह भी जरूरी है कि जिन बहुत गंभीर खतरों के प्रति उन्होंने बार-बार चेतावनियां दीं, उन खतरों के प्रति हम बहुत सावधान बने रहें। विशेषकर जीएम फसलों के विरुद्ध उनकी चेतावनी बहुत महत्त्वपूर्ण है। सर्वोच्च अदालत ने प्रो. पुष्प भार्गव को जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी (जी.ई.ए.सी) के कार्य पर निगरानी रखने के लिए नियुक्त किया।

जिस तरह जी.ई.ए.सी. ने बीटी बैंगन को जल्दबाजी में स्वीकृति दी; डॉ. पुष्प भार्गव ने उसे अनैतिक व एक बहुत गंभीर गलती बताया। प्रो. पुष्प भार्गव ने जेनेटिक रूप से संर्वधित (जेनेटिकली मोडीफाइड) या जीएम फसलों का बहुत स्पष्ट और तथ्य आधारित विरोध किया, वह भी बहुत प्रखरता से। जीएम खाद्यों के बारे में यह भी सिद्ध हुआ है कि इनसे चूहों में कैंसर होता है। इसी लेख में उन्होंने और भी स्पष्ट शब्दों में कहा, यदि हम सही विज्ञान के लिए प्रतिबद्ध हैं व अपने नागरिकों को स्वस्थ भोजन उपलब करवाने के लिए प्रतिबद्ध हैं तो हमने जैसे जीएम बैंगन पर प्रतिबंध लगाया था, वैसे ही हमें जीएम सरसों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए और सभी जीएम फसलों को ‘नहीं’ कह देना चाहिए, जैसे कि यूरोपियन यूनियन के 17 देशों ने कह दिया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *