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मसूरी: गढ़वाली खाने के साथ मुशायरे ने श्रोताओं को किया आनंदित

मसूरी से वरिष्ठ संवाददाता सतीश कुमार की रिपोर्ट: लंढौर स्थित एक रेस्टोरेंट के सभागार में उत्तराखंड के पहाड़ी खाने के साथ आयोजित शायर मंसूर राणा ने अपनी शायरी से कोरोना संक्रमण की उदासी को तोड़ते हुए श्रोताओं का जमकर मनोरंजन किया वहीं सांप्रदायिकता पर तंज कस झकझोर दिया।
इप्टा के सचिव सतीश कुमार की अध्यक्षता में आयोजित मुशायरे में जाने माने शायर मंसूर राणा ने अपनी शायरी प्रस्तुत करते हुए वफा और प्यार का जब वो हवाला छीन लेता है, तो फिर प्सासे के होठों से भी प्याला छीन लेता है, तू एक अदना सा जुगनू है तेरी औकात ही क्या है वो सूरज, चांद तारों से भी उजाला छीन लेता है, खुदा जब देता है तो फिर खजाने खोल देता है अगर लेने पर आ जाय तो निवाला भी छीन लेता है।
वहीं उन्होंने तू अपने ही बाजुओं को ही अगर पतवार कर देगा, ये छोटे मोटे दरिया क्या तू समंदर पार कर देगा, तू बूंढे बाप को जिसकी बदौलत छोड़ आया है तुझे रूसवा वहीं एक दिन सरे बाजार कर देगा, मुझे दुश्मन का कोई डर नहीं, डर दोस्तो का है, जो दुश्मन कर नहीं सकता वह मेरा यार कर देगा।
अजब बाजार है दुनिया यहां यारी भी बिकती है, वफा के दाम लगते हैं, वफा दारी भी बिकती है, यहंा क्या नहीं बिकता अदाकारी भी बिकती है, सलीके से अगर बेचों तो मक्कारी भी बिकती है, तुम बात करते हो फकत कुर्सी बिकने की, जरा सा गौर से देखो, यहां खुददारी भी बिकती है। सांप्रदायिक सदभाव पर उन्होंने शायर सुनाते हुए कहा कि हम मुसलमान मुहब्बत नहीं खोने देंगे, राम के नाम को बदनाम नहीं होने देंगे।
इस मौके पर सतीश कुमार ने अपनी शायरी प्रस्तुत करते हुए कहा कि कहां अल्ला, कहां जीजस, कहा राम रहता है, कहां नानक, कहां गौतम कहां भगवान रहता है, न वो मंदिर में छिपा है न मस्जिद में बैठा है, जहां ईमान रहता है, जहां इंसान रहता है वहीं अल्ला वहीं जीजस वहीं भगवान रहता है।
इस मौके पर पंकज अग्रवाल ने कहा कि जंगलों से नमी नहीं जाती, आओ बादलो को भेजें उस तरफ जिस तरफ नदी नहीं जाती। कार्यक्रम के आयोजन पर पंकज अग्रवाल ने कहा कि बुलेट पु्रफ जाकेट जान तो बचा सकती है पर सांसो को जिंदा रखने के लिए हृदय की जरूरत होती है।
उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण में उदासी के माहौल को बदलने व उनके चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है इसका मकसद संस्कृति को बचाने के साथ साहित्य को बचाना है। उन्होंने कहा कि पहाड़ी भोजन के साथ शायरी का अलग अंदाज प्रस्तुत किया है ताकि लोग इस ओर जागे, हालांकि पर्यटक खाना चाहता है लेकिन मिल नही पाता इसके लिए सरकार के स्तर पर प्रयास होना चाहिए।
वहीं शायर मंसूर राणा ने कहा कि पंकज भाई का प्रयास निश्चित ही सराहनीय है। उन्होने अदब व साहित्य से मुहब्बत करने के साथ ही तहजीब को जिंदा रखने का प्रयास किया, व गढवाली संस्कृति को खाने को जिंदा रखने के साथ साहित्य को भी जिंदा रखने की कोशिश कर रहे हैं। इस मौके पर शायर मंसूर राणा सहित अन्य को पहाड़ी टोपी भेंट कर सम्मानित किया। इस मौके पर उस्मान, छोटू भाई सहित अन्य लोग भी मौजूद रहे।

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