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देहरादून में अस्सी करोड़ रुपये में बने आइस स्केटिंग रिंक की बेकद्री

देहरादून। महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कालेज परिसर में अस्सी करोड रुपये की लागत से बना आइस स्केटिंग रिंक बर्बाद हो रहा है। 2011 में बने इस आइस स्केटिंग रिंक पर अभी तक सिर्फ दो प्रतियोगिताएं हुई है। 2011 में आइस स्केटिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से साउथ ईस्टर्न एशियन विंटर गेम्स व 2012 में आइस हॉकी ओपन स्केटिंग प्रतियोगिता के बाद इस रिंक का कोई उपयोग नहीं हुआ है। करीब 11 सालों में यह आइस रिंक खंडहर में तब्दील हो चुका है। इसके बाहर बड़ी-बड़ी झाड़ियां उगी हुई है। राज्य सरकाार आइस स्केटिंग रिंग के लिए पुख्ता योजना नहीं बना पा रही है।

संचालन कौन करे?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि इस आइस स्केटिंग रिंक का संचालन कौन करें? साउथ ईस्टर्न एशियन विंटर गेम्स के बाद रिंक का संचालन पर्यटन विभाग के जिम्मे रहा। पर्यटन विभाग ने कुछ स्केटिंग कैंप संचालित किए, इसके बाद रिंक खेल विभाग के सुपुर्द कर दिया गया। 2018 में सरकार ने इसका जिम्मा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का संचालन करने वाली स्पोर्ट्स स्टेडियम सोसाइटी को सौंपा। सरकार ने भी मदद का आश्वासन दिया। लेकिन बात इससे आगे नहीं बढ़ी।
देशी विदेशी स्केटर बिखेर चुके जलवा
आइस स्केटिंग रिंक को वर्ष 2011 में राज्य में साउथ ईस्टर्न एशियन विंटर गेम्स के लिए तैयार किया गया था। इस प्रतियोगिता में भारत, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, मालदीव, श्रीलंका आदि ने हिस्सा लिया था। विंटर गेम्स का आयोजन दून के साथ-साथ औली में भी हुआ था। औली में स्कीइंग व दून में आइस स्केटिंग प्रतियोगिता हुई थी। इसके बनने से जो खिलाड़ी शिमला व दूसरी जगहों पर तैयारी के लिए जाते थे उनके लिए दून में ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधा मिलने की उम्मीद थी।

आइस की जगह सीमेंट ट्रैक
आइस स्केटिंग की प्रैक्टिस के लिए रिंक उपलब्ध न होने की दशा में स्केटर मजबूरन सीमेंट ट्रैक पर अभ्यास करते हैं। आइस स्केटिंग के लिए शिमला ओपन रिंक है। जहां हर कोई जा नहीं सकता। दून का आइस स्केटिंग रिंक यदि खुला रहता तो इससे दूसरे राज्यों के स्केटरों को आमंत्रित किया जा सकता था। इस तरह से रिंक भी आय का जरिया बन सकता था। दून जैसा बड़ा रिंक किसी अन्य जगह पर नहीं है। इसका रिंक साठ गुणा तीस मीटर बड़ा व इसमें तीन हजार लोगों की बैठने की व्यवस्था भी है। शिमला में ओपन रिंक पर प्रति घंटा प्रैक्टिस फीस 300 से 400 रुपये है और वहां ठहरने में होने वाला खर्चा अलग है।

बिजली बिल व मेंटिनेंस बना चुनौती
रिंक संचालन में सबसे बड़ी बाधा बिजली का खर्च और इसकी मेंटिनेंस है। जिसमें हर दिन का मेंटीनेंस खर्चा चालीस हजार व बिजली का हर दिन का खर्च करीब 30 हजार रुपये है। रिंक के फ्लोर के नीचे कूलिंग करने के लिए रेफ्रिजरेटर लगे हुए हैं, जो बिजली से चलते हैं। इनसे सीमेंटेड फ्लोर के ऊपर बर्फ जमती है।
विंटर ओलम्पिक की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण इंडोर रिंक आइस स्केटिंग एसोसिएशन अध्यक्ष शिव पैन्यूली के अनुसार हाल में मनाली में हुई एसोसिएशन की नेशनल बॉडी मीटिंग में 2024 में होने वाले विंटर ओलम्पिक की तैयारियों को लेकर चर्चा हुई। लेकिन हमारे पास अपना रिंक ही नहीं है। कश्मीर, हिमाचल ओपन रिंक पर काम कर रहे हैं। अटल टनल के पार लाहौल में ओपन रिंक बना है। लेकिन वहां मई तक ही बर्फ मिलती है। हमारी बेसिक जरुरत इंडोर की है। इंडोर रिंक पूरे उत्तर भारत में दून के स्तर का नहीं है। इसलिए दून की भूमिका इस खेल की तैयारियों के लिए महत्वपूर्ण है। हमारे पास इस समय 45 सक्रिय खिलाड़ी, 30 राष्ट्रीय पदक विजेता व पांच अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी उपलब्ध हैं। विंटर गेम्स एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के मुख्य प्रवक्ता पीसी थपलियाल के अनुसार आइस रिंक संचालित न होने देने की सबसे बड़ी समस्या तो सरकार की उदासीनता है।

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