कट्टरपंथ पर चोट
शंघाई सहयोग संगठन के 21वें शिखर सम्मेलन में अफगानिस्तान के हालात के प्रसंगवश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चेताया कि कट्टरपंथ क्षेत्रीय शांति के लिये बड़ा खतरा उत्पन्न कर रहा है, जिसके लिये एससीओ देशों को मिलकर प्रयास करने चाहिए। ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में आयोजित सम्मेलन में पाक प्रधानमंत्री की उपस्थिति में मोदी ने चेताया कि कट्टरपंथ के चलते युवाओं को तकनीकी विकास का लाभ नहीं मिल पा रहा है और क्षेत्र के आर्थिक संसाधनों का दोहन नहीं हो पा रहा है। दरअसल, ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान की अध्यक्षता में हाइब्रिड प्रारूप के शिखर सम्मेलन में रूस, चीन व पाक समेत आठ देश भाग ले रहे हैं। हाइब्रिड इस मायने में कि आयोजन का कुछ हिस्सा डिजिटल आधार पर तथा शेष हिस्सा आमंत्रित सदस्यों की उपस्थिति के रूप में आयोजित किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने वर्चुअली सम्मेलन को सम्बोधित किया, वहीं विदेश मंत्री जयशंकर सम्मेलन में भाग लेने दुशांबे में मौजूद हैं जहां उन्होंने सीमा अतिक्रमण के मुद्दे पर चीनी समकक्ष से बातचीत की। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के सामान्य रिश्तों का रास्ता सीमा पर शांति से होकर गुजरता है। प्रधानमंत्री ने अफगानिस्तान की चुनौती को मिलकर निपटने की बात करते हुए कहा कि मध्य एशिया में इस्लाम से जुड़ी शांति, सहिष्णु और समावेशी संस्थाओं की बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने इस सम्मेलन के जरिये दुनिया को इस्लामिक कट्टरपंथ की चुनौतियों के प्रति आगाह किया। मोदी ने माना कि अफगानिस्तान में कट्टरपंथियों की सत्ता आने से क्षेत्र में अस्थिरता का खतरा पैदा हो गया है। प्रतीकों के जरिये प्रधानमंत्री ने पाक को चेताया कि देर-सवेर कट्टरपंथ उसके लिये खतरा बन सकता है। लोकतांत्रिक सरकार के दौरान जो आतंकी संगठन नियंत्रण में थे, अब तालिबान के सत्ता में आने के बाद वे स्वच्छंद व्यवहार करने लगे हैं। उन्होंने चेताया कि यह पूरा क्षेत्र कट्टरपंथी ताकतों के लिये सुरक्षित ठिकाना बन सकता है।
दरअसल, सबसे बड़ी चिंता यह है कि अफगानिस्तान में कट्टरपंथियों की वापसी के बाद अन्य इस्लामिक देशों में भी सख्त शरिया कानून लागू करने की मांग जोर पकडऩे लगी है। पाकिस्तान में भी वहाबी इस्लाम का खतरा बढ़ सकता है। यही वजह है कि मोदी ने कहा कि मध्य एशिया के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो यह उदार व प्रगतिशील मूल्यों का गढ़ रहा है। यहां सूफीवाद की उदारवादी परंपराएं सदियों तक पनपी व पूरे विश्व में इनका विस्तार हुआ, जिसकी झलक आज भी इन देशों की सांस्कृतिक विरासत में देखने को मिलती है। भारत समेत एससीओ के इन देशों में इस्लाम से जुड़ी उदारवादी, सहिष्णु और समावेशी संस्थाएं व परंपराएं मौजूद हैं।
इन हालात में एससीओ को कट्टरपंथ और आतंकवाद से लडऩे का एक साझा दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए। उन्होंने कट्टरपंथ से मुकाबले के लिये क्षेत्रीय सुरक्षा व परस्पर विश्वास की आवश्यकता पर भी बल दिया, जिसे उन्होंने नयी पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के लिये अनिवार्य शर्त भी माना। प्रधानमंत्री ने कहा कि विकसित देशों से मुकाबले के लिये इस क्षेत्र को नयी टेक्नोलॉजी में भागीदारी निभानी होगी। इसके लिये जरूरी है कि हम विज्ञान व तर्कवादी सोच को प्रश्रय दें। दरअसल, कट्टरपंथ के चलते हम इस क्षेत्र में विस्तृत आर्थिक संभावनाओं का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। इसके लिये सदस्य देशों के बीच बेहतर कनेक्टिविटी की जरूरत है। अतीत में मध्य एशिया के देशों के बीच क्षेत्रीय बाजारों में कनेक्टिविटी पुल की बड़ी भूमिका रही है। इस क्षेत्र में समृद्धि की बयार फिर से संभव है। भारत इस दिशा में संबंध बढ़ाने के लिये उत्सुक है।
इस बाबत उन्होंने ईरान के चाबहार पोर्ट में भारतीय निवेश का उदाहरण दिया और इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ कोरिडोर की वास्तविकता बतायी। उन्होंने कहा कि कनेक्टिविटी एकतरफा नहीं हो सकती और इसके लिये भरोसे, भागीदारी व पारदर्शिता की जरूरत है। साथ ही क्षेत्र के देशों की संप्रभुता का भी सम्मान किया जाना चाहिए। कहीं न कहीं प्रधानमंत्री चीन के महत्वाकांक्षी सीपीईसी प्रोजेक्ट और इससे जुड़ी विसंगतियों की ओर इशारा कर रहे थे जो पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है।