ख़बर उत्तराखंड

गंगा विश्व धरोहर घोषित हो विषय पर हुआ संगोष्ठी का आयोजन, गंगा पर बढ़ता प्रदूषण चिंताजनक

ऋषिकेश। आज श्रीदेव सुमन विश्व विद्यालय परिसर ऋषिकेश में गंगा विश्व धरोहर घोषित हो विषय पर संगोष्ठी आयोजित हुई जिसमें छात्रों के संवाद में गंगा नदी को स्वच्छ व निर्मल बनाने, जैव विविधता संरक्षण हेतु उत्तम सुझाव दिये गये। इस अवसर पर श्रीदेव सुमन विश्व विद्यालय परिसर विज्ञान संकाय के डीन डॉ. जी. के. ढींगरा ने कहा कि गंगानदी की महत्ता को इसी बात से समझा जा सकता है इससे करोड़ों लोगों की प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से आजीविका चलती है लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण व अन्य कारणों से गंगा पर बढ़ता प्रदूषण चिंताजनक है। इसलिए सरकारी स्तर से किये जा रहे प्रयासों को तभी कामयाबी मिलेगी जब इसमें जन जन का पर्याप्त सहयोग मिले। साथ ही उन्होंने कहा कि रासायनिक पदार्थाे का जल में विलय हो जाने के कारण जलीय जीवो तथा जलीय पौधों को भारी नुकसान होता है जलीय जीव जन्तुओ और पेड़ पौधों विलुप्त होने की कगार पर पहुंच रहे है।

गंगा नदी की स्थिति यह है अनेक स्थानों पर तो इसका जल अब आचमनी व स्नान करने योग्य भी नहीं रह गया है। इसलिए आज हम सबका कर्त्तव्य है कि गंगा नदी की अविरल व स्वच्छ रखकर इनके जीवन को बचाना होगा। क्योंकि गंगा की सफाई और उसके अस्तित्व में ही देश की भलाई निहित है। राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डी के चौधरी ने गंगा के सांस्कृतिक पक्षों विवेचना करते हुए कहा कि गंगा के प्रति करोड़ो लोगों की आस्था है इसलिए इसका समग्र अध्ययन करके इसे विश्व धरोहर के लिए पहल जरूरी है। राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान से सम्मानित सेवानिवृत्त शिक्षक नारायण सिंह राणा ने बताया कि सिमटते ग्लेशियर नदियों के लिए खतरे के द्योतक हैं इसलिए गंगा तटों पर अधिकाधिक वृक्षारोपण किया जाना जरूरी है। पॉलिथीन पर सरकार को शक्त प्रतिबंध लगाना चाहिए तथा लोगों को घर से निकलते समय कपड़े थैला हर हाल में ले साथ जाना चाहिए।

राज्य शैक्षिक पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक सोवेन्द्र सिंह ने भी माँ गंगा की खुशहाली के लिए इसे विश्व धरोहर में शामिल होना जरूरी बताते हुऐ इसकी स्वच्छता के लिए सभी से अपील की। गंगा धरोहर मंच के संयोजक डॉ. शम्भू प्रसाद नौटियाल ने कहा कि गंगा नदी को अनेकों दुर्लभ व जलीय प्रजातियों का घर माना जाता है, इसमें गंगेटिक डॉल्फिन, ऊदबिलाव, घड़ियाल, दलदली मगरमच्छ, एस्टुरीन मगरमच्छ और कछुए आदि के अलावा मछलियों की सैकड़ों प्रजातियाँ पाई जाती हैं। गंगा में हालांकि जल की मात्रा ज्यादा होने के बावजूद जल पीने योग्य नहीं है जिसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं जबकि हमें संविधान में 51 ए (जी) के अन्तर्गत प्रदत्त मौलिक अधिकारों में प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करने और उसका संवर्धन करने तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखने के दायित्व दिया गया है।

इसलिए इस राष्ट्रीय धरोहर को अगली पीढ़ी को सौंपने के लिए गंगा को विश्व धरोहर घोषित किये जाने का प्रयास कर गंगा की जैव विविधता को बचाना होगा। कार्य में सभी अतिथियों को गंगा रक्षक सम्मान से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर वनस्पति विज्ञान विभाग से डॉ. प्रीति खंडूरी, शालिनी कोठियाल, साजिया, अर्जुन पालीवाल, नरेश सिंह नेगी व विश्व विद्यालय के छात्र व प्राध्यापक उपस्थित थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *