एक और जहां चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियां तैयारियों में जुट गई है तो वहीं दूसरी और चुनावी बिगुल बज चुका है दरअसल योगी आदित्यनाथ ने पिछले साढ़े चार साल के कामकाज से अपनी बेहद सख्त प्रशासक की छवि बनाई है। विकास के अनेक कार्य करते हुए वे अपराधियों-आतंकियों के विरुद्ध बेहद कड़ी कार्रवाई करते रहे हैं।
इसका उन्हें अच्छा लाभ भी मिला है और उनके प्रशंसक उनकी इस छवि को ही उनकी सबसे मजबूत ताकत भी मानते हैं। हालांकि, उनकी कार्यशैली ने समाज के कई वर्गों में उनके आलोचक भी तैयार कर दिए हैं जो चुनाव में नुकसान पहुंचा सकते हैं। अगर योगी को दोबारा उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालनी है तो उन्हें इनसे पार पाना ही होगा।
योगी आदित्यनाथ की सरकार पर सबसे बड़ा सवाल उनकी पार्टी के कार्यकर्ता ही उठाते रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री अधिकारियों की बात ज्यादा सुनते हैं। हमारी अपनी सरकार होते हुए भी हम अपने ही कामकाज नहीं करवा पाते हैं।
ऐसे में दूसरे समर्थकों के कामकाज कराने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। कुछ कार्यकर्ताओं का तो यहां तक कहना है कि स्थिति ये है कि दूसरी पार्टी के कार्यकर्ताओं के कामकाज हो जाते हैं, लेकिन भाजपा कार्यकर्ता होने के कारण हमारे अपने कामकाज नहीं किए जाते हैं।
केंद्र सरकार ने मेडिकल कोटे में ओबीसी आरक्षण को मान्यता दे दी है। भाजपा ने यह दांव उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ओबीसी समुदाय के वोटरों को ध्यान में रखते हुए ही लिया है। लेकिन, आशंका है कि भाजपा का यह दांव उत्तर प्रदेश में ही उलटा पड़ सकता है। अनेक सवर्ण संगठन मेडिकल में भी ओबीसी आरक्षण लागू करने के विरोध में हैं। राज्य सरकार को इसका भी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने संतुलन साधने के लिए हर वर्ग के लोगों की भागीदारी को बढ़ाने का काम किया है। ओबीसी और एससी/एसटी समुदाय के लोगों की भागीदारी बढ़ाकर हर वर्ग को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की गई है। आगामी मंत्रिमंडल विस्तार में इसे और धार देने की कोशिश की जा सकती है। लेकिन बताया जा रहा है कि सरकार का यह फॉर्मूला बहुत कारगर साबित नहीं होने वाला है।
इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि ओबीसी समुदाय के मंत्री अपने वर्ग को ज्यादा मजबूती के साथ राज्य के मंत्रिमंडल में देखना चाहते हैं। इसके साथ ही कई मंत्री केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट न किए जाने से असंतुष्ट हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में उपयुक्त समीकरण न बन पाने पर इस वर्ग की नाराजगी सामने आ सकती है, जो योगी आदित्यनाथ सरकार पर भारी पड़ सकती है।