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दिलीप कुमार के निधन से मसूरी में शोक! मसूरी से था बेहद लगाव

मसूरी से वरिष्ठ संवाददाता सतीश कुमार की रिपोर्ट:। देश के एक महान मृदुभाषी कलाकार दिलीप कुमार का 98 साल की उमर में देहांत हो गया। उनका मसूरी से बेहद लगाव रहा है। उनकी मृत्यु से मसूरी वासियों को भी दुःख हुआ है। मालूम हो कि दिलीप कुमार मसूरी जब आते थे तो सवाय होटल में रूकते थे।

दिलीप कुमार के बारे में जानकारी देते हुए इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने उनको श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि दिलीप कुमार बहुत ही उम्दा व आलीशान शख्सियत के मालिक थे। साथ मिलनसार प्रभावशाली व्यक्त्वि के धनी भी थे। उन्होंने बताया कि वह तब बहुत छोटे थे जब वह 1960 के दशक में मसूरी घूमने आये थे व सवाय होटल में रूके थे। वह व्यक्तिगत भ्रमण पर आये थे।

उन्होंने बताया कि उनके साथ उनकी पत्नी शायराबानो भी थी। क्योंकि शायरा बानो का जन्म मसूरी के कम्युनिटी अस्पताल में सन 1943 में हुआ था इस लिहाज से मसूरी उनकी ससुराल भी हुई तथा उनका मसूरी से लगाव हो गया था। उन्होने बताया कि 1960 में दिलीप कुमार की एक फिल्म दास्तान मसूरी में बनी थी उसमें सवाय का जिक्र है लेकिन यह पता नहीं कि उसकी शूटिंग मसूरी में हुई या नहीं लेकिन फिल्म में सवाय होटल का जिक्र है। उसमें उनका डबल रोल था।

उन्होंने बताया कि फिल्म कलाकार सईद जाफरी भी मसूरी में पढे हैं तथा दिलीप कुमार के अभिन्न मित्र थे। शायद उनके साथ भी वह मसूरी आये होगें। उन्होंने कहा कि उस जमाने में बंबई से सभी कलाकार व अन्य लोग मसूरी व नैनीताल घूमने आते थे तब विदेश नही जाते थे। लेकिन दिलीप कुमार का जाना निश्चित ही दुखदायी है क्योंकि उन जैसा कलाकार फिर नहीं आयेगा क्यों कि जब सिनेमा शुरू हुआ था वह तब के कलाकार थे तथा उस समय की फिल्मों में उनकी आत्मा होती थी।

आज फिल्मो का स्वरूप बदल गया है। वह खुद एक कलाकार नहीं बल्कि इंस्टीटयूशन थे। वह भारतीय सिनेमा के मील का पत्थर थे। उनकी मृत्यु से भारत सहित यूरोप व पाकिस्तान आदि में भी बड़ी संख्या में प्रशंसक है जिन्हें दुख हुआ है।

मूलतः वह पाकिस्तान के पेशावर से आये थे लेकिन जब भारत पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो वह पाकिस्तान नहीं गये। उन्होंने अपना नाम यूसुफ से दिलीप कुमार रख लिया। वह भारत को बहुत प्यार करते थे। पालिका सभासद व वरिष्ठ नागरिक मदन मोहन शर्मा ने कहा कि बहुत दुःख हुआ कि भारत के एक महान व बड़े कलाकार का निधन हो गया।

मेरा सौभाग्य है कि ज बवह मसूरी आये थे तो सवाय होटल में रूके। वहां की फोटोग्राफी का कार्य मेरे पिताजी करते थे। मैं उनके साथ सवाय गया व दिलीप कुमार के साथ फोटो खिंचवाई। उन्होंने बताया कि वह अपने व्यक्तिग रूप से घूमने आये थे। तब पिताजी ने उनके साथ मेरा एक चित्र खींचा। उनका इतना विनम्र स्वभाव, इतना अच्छा नेचर इतने बड़े कलाकार का देख हैरान रह गया। कहीं से भी घमंड नजर नहीं आया उन्होंने मुझे बुलाया व कहा बेटे आओ व फोटो खिंचवाओं। आज उनके जैसा प्रेरणा देने वाला कलाकार पैदा नहीं हो सकता। भारत ने एक ऐसा ही महान कलाकार व सिनेमा जगत के स्तंभ को खो दिया जिन्होंने दशकों तक लोगों के दिलों में राज किया।

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