ब्यूरो रिपोर्ट देहरादून: जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे सियासी गलियारों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। सियासी गलियारों में बयानबाजी का दौर तेज होता जा रहा है। उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव 2022 नजदीक है। विधानसभा चुनाव की तैयारियों में सभी पार्टियां जुट गई है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपने नेताओं को एकजुट करने में लगी हुई है।
तो वहीं इन दिनों उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत काफी चर्चाओं में हैं। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बौखलाए हुए हैं। इस बार सुर्खियों की वजह उनका दिल्ली दौरा और एक बयान है। ये बयान उनका मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने को लेकर है। इस बार उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपनी ही पार्टी के हाईकमान पर प्रश्न कर रहे हैं।
पूर्व सीएम त्रिवेंद्र इस बार हाईकमान से जवाब मांग रहे हैं कि, आख़िर उनको मुख्यमंत्री पद से क्यों हटाया गया। उन्होंने खुद कहा है कि मुख्यमंत्री के पद से हटाया जाना उनकी उम्मीदों से परे था, क्योंकि उस समय विधानसभा का सत्र चल रहा था। अगर ये फैसला थोड़े समय बाद लिया जाता तो कोई आश्चर्य नहीं होता।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने का निर्णय यदि दो-तीन दिन बाद लिया जाता तो अच्छा होता, क्योंकि ये निर्णय विधानसभा सत्र के बीच में हुआ तो मुख्यमंत्री, पार्टी कार्यकर्ता और इंसान होने के नाते स्वाभाविक तौर पर उन्हें उम्मीद थी कि ये फैसला विधानसभा सत्र खत्म होने के बाद लिया जाएगा। लेकिन पार्टी का एक अनुशासित कार्यकर्ता होने के नाते उन्होंने बीजेपी हाईकमान के आदेश का पालन किया। हालांकि, उनका जो बयान मीडिया में चल रहा है, वो तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हाल ही में दिल्ली दौरे से देहरादून लौटे हैं। अपने दिल्ली दौरे के लेकर रावत ने बताया कि मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद वे दिल्ली नहीं जा पाए थे। इसलिए अब वे दिल्ली गए और अपने चार साल के कार्यकाल में उन्हें केंद्र से जो सहयोग मिला, इसको लेकर उन्हें केंद्रीय नेतृत्व का धन्यवाद किया।
मुख्यमंत्री के पद से हटाए जाने के बाद से ही इस तरह की चर्चाएं की जा रही हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को केंद्र में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। इस सवाल पर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि एक कार्यकर्ता होने के नाते हाईकमान उन्हें जो भी जिम्मेदारी देगा, उसे वे स्वीकार करेंगे। उन्हें क्या जिम्मेदारी देनी है, ये आलाकमान तय करेगा और वो ही उस पर विचार करेगा।